मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना हिंदी हैं हम हिंदुस्तान हमारा” शायर की यह चंद लाइने हिंदुस्तान को इतनी मजबूती इतनी ताकत देती है हिंदुस्तान किसी भी नफरत को बर्दाश्त कर लेता है। लाखों लोग इस मुल्क में रोज पैदा होते हैं और मर जाते हैं लेकिन कुछ ऐसे होते हैं जोकि इस मुल्क की तारीख को लिखने की कोशिश करते हैं जो यह बताने की कोशिश करते हैं कि इस मुल्क में रहने वाला हर बाशिंदा उतना ही इस मुल्क का हकदार है जितना कि उसे होना चाहिए और ऐसे ही लोगों में एक नाम हिमांशु श्रीवास्तव जो कि सही मायनों में एक भारतीय थे।हिमांशु श्रीवास्तव जिनकी निगाह में हर आने वाला शख्स सिर्फ इंसान होता था वह उसका मज़हब देखने की बजाय सिर्फ उसकी तकलीफ देखते थे। caa nrc आंदोलन में जब भारत के मुसलमानों को यह लगने लगा कि हमारे साथ कोई बहुत बड़ी ज़्यादती होने वाली है तब हिमांशु श्रीवास्तव इस मुल्क में मुसलमानों के साथ कंधा मिलाकर खड़े हो गए और जिन्होंने यह एहसास कराया कि हिंदुस्तान का मुसलमान अकेला नहीं है और उसकी लड़ाई लड़ने के लिए उससे आगे उसके वह भाई जो कि सिर्फ इंसानियत को जानते हैं मुसलमानों से साथ खड़े है।।कम्युनिस्ट विचारधारा के हिमांशु श्रीवास्तव देश के ऐसे मज़बूत पिलर थे जिनके कंधो पर हिंदुस्तान हमेशा मज़बूती के साथ खड़ा रहेगा।कारखानों मैं काम करने वाले मज़दूरों के लिए हमेशा ऐसे खड़े रहते जैसे कि वो उनके बड़े भाई हो।देवास शहर मे काम करने वाले मज़दूरों के मसीहा के रूप मे हिमांशु श्रीवास्तव जाने जाते थे।भंडारी फोइल्स कंपनी के आंदोलन को उन्होंने वो ताक़त दी कि शहर की दूसरे कारखाना मालिक हिमांशु श्रीवास्तव के नाम से ख़ौफ़ खाने लगे।यक़ीनन 36 साल की एक बहुत छोटी सी उम्र मैं कोरोना जैसी भयंकर महामारी से लड़ते हुए हिमांशु श्रीवास्तव का चले जाना देश का एक ऐसा नुकसान है जिसकी भरपाई काफी मुश्किल है।