मध्यप्रदेश के समस्त पात्र छात्रों को छात्रवृत्ति, छात्र-आवास योजना की राशि का भुगतान अविलंब किए जाने, व छात्रवृति राशि में किसी भी प्रकार की कटौती न करने और परीक्षा रद्द होने व ओपन बुक या ऑनलाइन एग्जाम होने से छात्रों की परीक्षा फीस वापस करने की मांग पर आज छात्र संगठन ऑल इंडिया डीएसओ की जिला इकाई ने प्रदेश के मुख्यमंत्री के नाम जिला कलेक्टर को ज्ञापन सौंपा |
छात्र संगठन एआईडीएसओ के जिला अध्यक्ष विनोद प्रजापति ने कहा कि हम सब भली-भांति जानते हैं कि कोरोना महामारी ने आम जनजीवन को बुरी तरह प्रभावित किया है। लाखो लोग कोरोना के शिकार होकर अपनी जान गंवा चुके है। लोगो के काम-धंधे बंद हैं , लाखो लोग बेरोजगार हो चुके हैं उनके सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है। इन्ही लोगो में हम छात्र और हमारे परिजन भी शामिल हैं व इन हालातों से अलग नही है। छात्रों के दो शैक्षणिक सत्र पूरी तरह बर्बाद हो चुके हैं। ऑनलाइन कक्षाएं व ओपनबुक परीक्षाएं सिर्फ औपचारिकताएं ही साबित हुई हैं, वास्तविकता यही है कि इन दो सत्रों में पठन-पाठन नाम मात्र का ही हुआ है। कोरोना से उपजी विषम आर्थिक परिस्थितियों से जूझ रहे छात्रों को आर्थिक मदद देने की बात तो छोड़िए मध्यप्रदेश सरकार छात्रवृति तक समय पर नही दे रही है और इस बार तो कई छात्रों की छात्रवृति में कटौती तक कर दी है।
उन्होंने आगे कहा कि, छात्रों को छात्रवृत्ति दी जाती है ताकि गरीब मध्यम वर्ग से आने वाले छात्र जो शिक्षा खर्च को वहन करने में सक्षम नही है, पैसे की कमी के चलते कही शिक्षा से वंचित न हो जाएं। किंतु प्रदेश के लाखों छात्रों को पूरा सत्र समाप्त होने पर भी छात्रवृत्ति नहीं मिल पाई है और जिन छात्रों को छात्रवृत्ति मिली भी है उनमें से सेल्फ फाइनेंस विषयो के कई छात्रों की छात्रवृति की राशि में 30-40% की कटौती कर दी है। अन्य पिछड़ा वर्ग के अधिकांश छात्रों को छात्रवृत्ति नहीं मिल सकी है। सरकारी विभागों के चक्कर लगा रहे है इन छात्रों को बजट की कमी का हवाला देकर कई महीनों से टाला जा रहा है। लगातार दूसरे वर्ष में अनुसूचित जनजाति वर्ग के छात्रों की छात्रवृत्ति फॉर्म सत्र समाप्त होने तक भी नहीं भरे जा सके हैं। पिछले सत्र में भी एसटी वर्ग के छात्रवृत्ति फॉर्म पोर्टल न चलने से सत्र की समाप्ति के बाद भरे गए थे। दो साल बीत गए हैं किंतु पोर्टल तक नही सुधारा जा सका हैं।
छात्र संगठन एआईडीएसओ के जिला कमिटी सदस्य विजय मालवीय का कहना है कि हम जानते हैं कि प्रदेश के अधिकांश छात्र-छात्राये अपने घरों से दूर किराये के कमरे लेकर और पार्ट टाइम काम कर, ट्यूशन पढा कर व स्कालरशिप आदि के सहारे अपनी पढ़ाई कर पाते हैं। ऐसे हालात में जब काम-धंधे बंद हैं, छात्र और उनके परिजन मुश्किल वक़्त से गुजर रहे हैं तब छात्रवृति में कटौती व देरी और आवास योजना की राशि न आना उन्हें शिक्षा दूर कर देगा।
परीक्षाओं के आयोजन के प्रति भी सरकार का रवैया पूरी तरह अवैज्ञानिक व एकतरफा है । छात्रों-शिक्षकों-शिक्षाविदों, वैज्ञानिकों आदि से व्यापक चर्चा किए बिना अचानक से टेलीविजन पर घोषणा कर छात्रों की बोर्ड परीक्षाएं रद्द कर दी गई। इसी तरह उच्चशिक्षा में प्रथम व द्वितीय वर्ष को जनरल प्रमोशन व अंतिम वर्ष के छात्रों की अवैज्ञानिक ओपन बुक पद्धति से परीक्षा की घोषणा की गई है। न तो प्रमोशन देने की प्रक्रिया में ही और न ही ओपन बुक या ऑनलाइन परीक्षाओं के आयोजन में कोई बड़ा सरकारी खर्च होगा। इसीलिए छात्रों की परीक्षा फीस माफ़ की जानी चाहिए थी किंतु सरकार इसके विपरीत पूरी परीक्षा फीस वसूल रही है। महोदय सवाल उठता है कि जब उत्तर पुस्तिकाओं, प्रश्न पत्रों, परीक्षाकक्ष में ड्यूटी देने वाले शिक्षकों के मानदेय, छात्रों की बैठक व्यवस्था, बिजली व्यवस्था आदि तमाम मदो में खर्च शून्य है तब फिर ये परीक्षा फीस क्यों ली जा रही है। एक स्कूली छात्र की बोर्ड परीक्षा फीस 925 रूपये और महाविद्यालयीन छात्र की परीक्षा फीस 1500 से 5000 रूपये तक है। यदि इसके माध्यम से सरकारों के पास एकत्रित धन का अंदाजा लगाया जाये तो आंकड़े हैरान करने वाले हैं। मध्यप्रदेश में 2020 के बोर्ड परीक्षा में बैठने वाले छात्रों की संख्या को आधार मान कर यदि गणना की जाये तो दसवीं के 11.2 लाख विद्यार्थियों से ₹925 प्रति छात्र के हिसाब से एकत्रित की गई राशि 103.6 करोड़ रूपये थी और इसी तरह 12वीं के 6,64,504 छात्रों से ₹925 प्रति छात्र के हिसाब से राशि 61.4 करोड़ रूपये थी। इसी तरह प्रदेश में सिर्फ परम्परागत डिग्री कोर्सेज में पिछले सत्र में प्रथम वर्ष में 2,80,000 के लगभग छात्रों ने प्रवेश लिया था । साथ ही इससे दुगनी-तिगुनी संख्या में छात्र-छात्राएं इंजीनियरिंग, मैनेजमेंट, डिप्लोमा, मेडिकल, विधि आदि की पढ़ाई कर रहे हैं। जिनसे या तो बिना परीक्षा कराएं या नाम मात्र के सरकारी खर्च पर ओपन बुक, ऑनलाइन परीक्षाएं आयोजित कर पूरी परीक्षा फीस ली गई है। अकेले जीवाजी विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर प्रदर्शित आंकड़ों को आधार बनाया जाए तो जीवाजी विश्वविद्यालय व इससे जुड़े महाविद्यालयों में कुल मिलाकर 3,40,000 छात्र अध्ययनरत हैं और प्रति छात्र औसतन 1500 रूपये परीक्षा फीस के रूप में लिया जाता है। इस तरह एक सत्र में 51 करोड़ रूपये जीवाजी विश्वविद्यालय ने छात्रों से परीक्षा फीस के रूप में इकट्ठा किया है जिसका 10-15% हिस्सा भी परीक्षाओं पर खर्च नही हुआ है। इसी तरह मध्य प्रदेश के दो केंद्रीय विश्वविद्यालय, 16 राज्य विश्वविद्यालय, तीन डीम्ड विश्वविद्यालय, 20 निजी विश्वविद्यालय आदि ने मिलकर हजारों करोड रुपए छात्रों से इकठ्ठा किये हैं।
वही महाविद्यालय स्तर पर परीक्षाओं के खर्च (साफ़ सफाई, बैठक व्यवस्था, बिजली बिल आदि खर्च) के नाम से छात्रों से ली जाने वाली एग्जाम फॉरवार्डिंग फीस जो की इस बार शून्य हो जानी चाहिए थी। उसकी उगाई भी लगातार जारी है। उदहारण के लिए पी जी कॉलेज गुना ने एग्जाम फॉरवर्डिंग फीस के नाम पर नियमित छात्रों से प्रति छात्र 215 रूपये और प्राइवेट छात्रों से प्रति छात्र 415 रूपये शुल्क एकत्रित किया।जब प्रथम और द्वितीय वर्ष के छात्रों की परीक्षा नही हो रही और अंतिम वर्ष के छात्रों को सिर्फ उत्तरपुस्तिका जमा करने ही कॉलेज आना है। तब क्या ये ये करोड़ो रूपये सिर्फ उत्तरपुस्तिका जमा करने की बेंच लगाने में ही खर्च होगा।
हम सरकार से पूछना चाहते है कि क्या संकट के इस समय में बिना परीक्षाओं के आयोजन के परीक्षा फीस लेना किसी भी नजरिये से जायज ठहराया जा सकता है? क्या सरकार को कोरोना से तबाह हुए परिवार नही दिखाई दे रहे? बेरोजगारों की बड़ी हुई संख्या, आम लोगो का रोजी-रोटी का संकट, हजारो घरों में पसरा मातम क्या सरकार से छिपा हुआ है?
पिछली 9 जून को प्रदेश के सैकड़ों छात्रों ने सीएम हेल्पलाइन पर शिकायत दर्ज कर छात्रवृति देने और परीक्षा फीस वापस करने की मांग की तो विभिन्न जगह के अधिकारी व अफसर छात्रों पर शिकायतें वापस लेने के लिए दबाब तक बना रहे हैं जो की नैतिकता की दृष्टि से पूरी तरह गलत है।
प्रदेश भर में परेशान हो रहे छात्रों की छात्रवृति वा छात्रावास योजना की राशि अविलंब खाते में डाली जाए-AIDSO
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