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आठ माह में ऐसा क्या हुआ कि भाजपा ने दीपक जोशी की वापसी के लिए बिछा दिया लाल क़ालीन

ByM. Farid

Nov 8, 2024

आठ माह में ऐसा क्या हुआ कि भाजपा ने दीपक जोशी की वापसी के लिए बिछा दिया लाल क़ालीन ।
18 माह कांग्रेस में गुजारने के बाद दीपक जोशी ने घर वापसी करते हुए भाजपा में दोबारा शमिल हो गए।
लाड़ली बहना योजना की आंधी के चलते कांग्रेस के टिकट पर खातेगांव विधानसभा में हार का मुंह देखने वाले दीपक जोशी ने चुनाव परिणाम के बाद ही भाजपा में जाने के प्रयास शुरू कर दिए थे। लेकिन भाजपा की और से उन्हें किसी भी तरह की तवज्जो नहीं मिली।लेकिन मात्र आठ माह में ऐसा क्या हुआ कि भाजपा ने लाल क़ालीन बिछाते हुए शिवराज सिंह चौहान के हाथों बुधनी विधानसभा के मंच पर हार पहना कर दीपक जोशी को पार्टी में शमिल कर लिया।
दरअसल दीपक जोशी को संसाधनों के अभाव में ज़मीनी स्तर की राजनीति करते आता है जो उन्हें उनके पिता से विरासत में मिली हैं। भाजपा ने जब उनके लिए दरवाज़े बंद कर दिए तो दीपक जोशी ने देवास शहर के ऐसे कॉन्ग्रेसियों का प्रतिनिधित्व शुरू किया जो मुद्दों की राजनीति तो करते है लेकिन लचर कांग्रेसी नेतृत्व के अभाव में मामले जनता के बीच नहीं रख पाते थे।

 

दीपक जोशी के जाने के बाद इस पोस्टर की शहर भर में चर्चा में

 

दीपक जोशी के नेतृत्व में देखते ही देखते शहर की सियासी फिज़ा एकदम बदल गई और वर्षों से खामोश पड़ी कांग्रेस में जैसे जान आ गई। दीपक जोशी ने शहर में समानांतर कांग्रेस के रूप में चर्चित ICH कांग्रेस के नाम से पहचान रखने वाले कॉन्ग्रेसियों की ताक़त का बख़ूबी इस्तेमाल करते हुए शहर में एक मज़बूत विपक्ष खड़ा कर दिया जिसका आभाव कई वर्षों से शहर में देखा जा रहा था।
वर्षों से ठंडे बस्ते में पड़े भ्रष्टाचार के गम्भीर मामले धीरे धीरे खुलने लगे जिनकी चर्चा आमजन के बीच होने लगी। जिसमें जवेरी राम मंदिर का मामला तो शहर के प्रत्येक नागरिक की ज़बान पर आ चुका है। दीपक जोशी की राजनीतिक समझ का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने वक़्फ़ की उन बेशकीमती ज़मीनों के मुद्दे भी उठाए जिन पर बोलने से आम तौर पर कांग्रेसी बचते है।

शहर की इस बदलती सियासी फिज़ा को देखकर भाजपा के थिंक टैंक को ये समझ आने लगा कि दीपक जोशी अगर थोड़े दिन और कांग्रेस में और रहे तो कहीं प्रदेश स्तर पर एक मज़बूत विपक्ष ना खड़ा कर दें। और इसीलिए बिना देर किए दीपक जोशी को भाजपा में सासम्मान शमिल कर लिया गया।

वैसे अब ये देखना बहुत ही दिलचस्प होगा कि दीपक जोशी के जाने के बाद ICH कांग्रेस के लिए “माहुरकर किचन कैबिनेट”  से क्या नई रूप रेखा तैयार होती है।क्योंकि ये माना जा सकता है कि संसाधनों के आभाव में मुद्दों को जनता के बीच सफलतापूर्वक ले जाने का सियासी गुर दीपक जोशी से इस ICH कांग्रेस ने अच्छे से सीख लिया है।

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