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स्टेशन रोड क़ब्रिस्तान विवाद। मुस्लिम पक्ष को अदालत से मिली बड़ी राहत

ByM. Farid

Feb 20, 2024

देवास

स्टेशन रोड क़ब्रिस्तान विवाद। मुस्लिम पक्ष को अदालत से मिली बड़ी राहत

13 जनवरी 2024 को देवास शहर के रेलवे स्टेशन रोड स्थित क़ब्रिस्तान में मय्यत दफनाने को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया था दरअसल मुस्लिम मंसूरी समाज के जाकिर पिता अब्दुल सत्तार की मैय्यत लेकर समाजजन जब क़ब्रिस्तान पहुंचे तो देवास शहर के वाल्मीकि समाज ने ये कहते हुए मैय्यत को क़ब्रिस्तान के अंदर जाने से रोक दिया की उक्त क़ब्रिस्तान पर वक्फ ट्रिब्यूनल का स्टे है इसलिए किसी भी तरह की गतिविधि यहां नहीं हो सकती। इसी मामले को लेकर। मुस्लिम समाज ने वक्फ न्यायाधिकरण का दरवाज़ा खटखटाया।

 

मामले की सुनवाई करते हुऐ 19 फरवरी को वक्फ न्यायाधिकरण ने स्टेशन रोड देवास के कब्रिस्तान में जनाजा दफन करने को लेकर और कब्रिस्तान द्वार पर ताला लगाने के मामले में कब्रिस्तान वक्फ कमेटी को बड़ी राहत दी है।

 

न्यायाधिकरण ने इस मामले में अनुविभागीय अधिकारी को निर्देशित किया है कि वह शांति भंग न करने के आशय का शपथ पत्र लेकर कब्रिस्तान गेट का ताला खोलें आर क़ब्रिस्तान में दफनाने की जो गतिविधि है उसमें हस्तक्षेप ना करे।

क्या है पूरा मामला

पिछले समय स्टेशन रोड क़ब्रिस्तान में विवाद का की स्तिथि उस समय उत्पन्न हुई जब जाकिर पिता अब्दुल सत्तार – की मौत के बाद जनाजा दफन के लिए स्टेशन रोड स्थित वक्फ कब्रिस्तान ले जाया गया। तभी वाल्मिकी समाज कब्रिस्तान में गेट पर रास्ता रोक कर खड़ा हो गया। कब्रिस्तान गेट पर ही दोनों पक्ष – आमने-सामने हो गए थे। मौके की नज़ाकत को देखते हुए पुलिस अधिकारी फोर्स के साथ मौके पर पहुंचे और स्तिथि को नियंत्रण में ले लिया था।

 

मुस्लिम समाज का कहना है की  इस मामले में न्यायाधिकरण पूर्व में मुस्लिम समाज के पक्ष में यथा स्थिति बनाए रखने के आदेश दे चुका था, जिसे जिला प्रशासन ने अनदेखा कर दिया,जबकि उन्हें इसकी जानकारी थी।

मुस्लिम समाज ने विवाद की स्तिथि को टालते हुए मैय्यत किसी और क़ब्रिस्तान में दफन करने के निर्णय लिया तथा कब्रिस्तान में जनाजा दफन करने को लेकर हुए विवाद पर कब्रिस्तान कमेटी के कोषाध्यक्ष इकबाल अहमद और सदस्य सलीमुद्दीन ने एडवोकेट शाहनवाज खान के ज़रिए न्यायाधिकरण में यथा स्थिति आदेश की अवहेलना किए जाने पर शासन की ओर से कलेक्टर, अनुविभागीय अधिकारी, मुख्य कार्यपालन अधिकारी वक्फ बोर्ड एवं ओमप्रकाश भावसार के खिलाफ आवेदन प्रस्तुत किया। मामले की सुनवाई माननीय जिला न्यायाधीश और न्यायाधिकरण के अध्यक्ष तनवीर अहमद के समक्ष हुई।

क़ब्रिस्तान में कब्रों पर लगे शिलालेख

सुनवाई के दौरान मुस्लिम विधि शास्त्री और जूरी मेंबर हसन जैदी न्यायालय में उपस्थित थे। वक्फ बोर्ड की ओर से सीनियर एडवोकेट अंसार उल हक एवं शासन की ओर से एडवोकेट संतोष शर्मा ने अपने-अपने पक्ष रखे।

शासन ने अपना पक्ष रखते हुए अदालत को बताया कि दंगा होने की आशंका के चलते मुस्लिम समाज को जनाजा किसी और क़ब्रिस्तान में दफनाने को कहा गया था।अधिकरण के किसी भी आदेश की अवहेलना नहीं की गई।

याचिकाकर्ता की और से 2023-24 के प्रमुख समाचार पत्रों की छाया प्रति एवं निजाम शेख तथा इसहाक अहमद के मृत्यु प्रमाण पत्र और कब्रिस्तान गेट पर लगे ताले के फोटो प्रमाण के रूप में अदालत में पेश किए। प्रतिवादी की और से अदालत को बताया गया कि 1975 से पूर्व विवादित खसरा नंबर 84 वाल्मीकि समाज के मरघट के नाम से राजस्व में रिकॉर्ड में दर्ज था। प्रशासन हस्तक्षेप नहीं करता तो दंगा होने की संभावना थी।

सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद मुस्लिम पक्ष की मांग स्वीकारते हुए माननीय न्यायाधिकरण ने अनुविभागीय अधिकारी को निर्देशित किया कि वह शांति भंग न करने के आशय का शपथ पत्र दोनों पक्षों से लेकर कब्रिस्तान के गेट का ताला खोले।जो भी पक्ष शपथ पत्र नहीं देता है तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाए

 

इस मामले में अगली सुनवाई के लिए 19 मार्च 2024 को है

 

न्यायाधिकरण द्वारा दिए गए निर्देशो के बाद शहर में क़ब्रिस्तान में मैय्यत दफन को लेकर बन रही असमंजस की स्तिथि अब पुरी तरह से साफ हो गईं है।

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